Thursday, April 26, 2012

राजकुमारी अम्बा की प्रतिज्ञा

(महाभारत की कहानियाँ - कथा तीन)

महाभारत युद्ध के समय भीष्म अजेय थे। वे सबों को रोकने में समर्थ भी थे। किन्तु शिखण्डी के सामने आने पर उन्होंने कहा कि वे उस पर शस्त्र नहीं उठायेंगे। यह सुनकर दुर्योधन ने उनसे इसका कारण पूछा। तब भीष्म ने राजकुमारी अम्बा की कथा कुछ इस प्रकार सुनाई।
महाभारत, उद्योगपर्व

महाभारत के युग में काशी राज्य का बहुत नाम था। वह राज्य सुखी और संपन्न था। काशीनरेश की तीन बेटियाँ थीं - अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका। सुन्दरता और गुण में तीनों ही एक से बढ़कर एक थीं। काशीनरेश को उनकी शादी की चिंता थी। उस समय राजवंशों में स्वयंवर की प्रथा थी। सभी राजा इसमें भाग लेते थे और राजकुमारी किसी एक को माला पहनाकर उससे शादी करती थी। एक दिन विचार करके काशीनरेश ने भी अपनी तीनों बेटियों के लिए स्वयंवर की घोषणा कर दी।

 स्वयंवर वाले दिन देश-विदेश के राजा अपने मंत्रियों के साथ सज-धजकर भाग लेने आए। राजा शांतनु के पुत्र भीष्म भी वहाँ आए। उस समय तक भीष्म बूढ़े हो चले थे। लोगों ने समझा कि वे अपनी शादी के लिए स्वयंवर में आए थे और उनका मजाक उड़ाने लगे। किन्तु यह सच नहीं था। वास्तव में वे अपने सौतेले भाई विचित्रवीर्य के लिए पत्नी की तलाश करने आए थे। स्वयंवर में आए राजाओं के इस प्रकार के व्यवहार से भीष्म को गुस्सा आ गया और उन्होंने तीनों राजकुमारियों का हरण कर लिया। स्वयंवर में आए उन सभी राजाओं ने मिलकर उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वे उन सबों को हराकर उन तीन राजकुमारियों के साथ हस्तिनापुर चले आए। उस समय राजपूतों में हरण करके शादी करने की भी प्रथा थी।

 
जब इन तीनों राजकुमारियों के विवाह की तैयारियाँ हो रही थीं तो राजकुमारी अम्बा इससे प्रसन्न नहीं थी। भीष्म के पूछने पर उसने कहा कि वह राजा शल्य से प्यार करती है। इसलिए विचित्रवीर्य से विवाह नहीं कर सकती। तब भीष्म ने इस पर विचारकर उसे राजा शल्य के पास जाने की अनुमति दे दी। उसके बाद राजकुमारी अम्बा राजा शल्य के पास चली गई।

उधर राजा शल्य को अम्बा के हरण का समाचार मिल चुका था। इसलिए शल्य ने उससे विवाह  करने से इंकार कर दिया। अम्बा ने जब इसका कारण पूछा तो राजा शल्य ने उससे कहा कि जिसने उसका हरण किया है वह उसी से विवाह करे। स्पष्ट था कि राजा शल्य को या तो अम्बा पर विश्वास नहीं रहा था अथवा वे पहले से हरण की गई राजकुमारी के साथ विवाह नहीं करना चाहते थे।

अम्बा ने राजा को सबकुछ बताया। अपनी सारी व्यथा-कथा बताई। बहुत मनाया, लेकिन राजा शल्य का दिल नहीं पसीजा। अम्बा इस स्थिति में पहुँचकर अत्यंत दुखी हुई। उसने अपना घर-बार त्याग दिया और वाह तपस्वियों के आश्रम में रहने लगी। वह दिन-रात अपने भाग्य को कोसती हुई  आश्रम में अपना जीवन बिताने लगी, परन्तु उसके दिल में भीष्म के प्रति क्रोध कम नहीं हुआ। वह अपनी इस दशा के लिए उन्हें ही उत्तरदायी मानती थी।