महाभारत की लोककथा का प्रारंभ ‘पवन प्रवाह’ पर हो चुका है। प्रथम कथा का शीर्षक है - ‘मित्रता में दरार’’। यह कथा एक सियार एवं व्याघ्र की मित्रता की है, जिसके माध्यम से बताया गया है कि यदि एक बार मित्रता में दरार आ जाये, तो वह कभी भरता नहीं है। साथ ही यह संदेश भी है कि अपने स्वाभाव वालों के साथ ही मित्रता टिकती है। इसे पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा इस चित्र से ही पढ़ सकते हैं जो नीचे है।
सम्मानित मित्रो, महाभारत की कथाओं के क्रम में पच्चीसवीं कड़ी के रूप में प्रस्तुत है ‘‘दमयन्ती और नल का पुनर्मिलन’’। हमने अब तक देखा कि नल एवं दमयन्ती एक-दूसरे से अलग हो गये। उन्हें नाना प्रकार के कष्टों से गुज़रना पड़ा। जहाँ दमयन्ती अभी भी राजा नल की तलाश में थी, वहीं राजा नल युक्ति से अपना राज्य वापस पाने के लिये प्रयासरत थे। तब दमयन्ती ने किस प्रकार राजा नल को पहचाना और उनसे मिली, अब इस कथा में वर्णित है। कथा पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें।
सम्मानित मित्रो, महाभारत की कथा के रूप में चौबीसवीं कड़ी में प्रस्तुत है - ‘‘राजा नल एवं दमयन्ती’’ की कथा का चतुर्थ भाग - ‘‘नल एवं दमयन्ती की दुर्लभ यात्रायें’’। मित्रों, हमने देखा कि राजा नल दमयन्ती को सोती छोड़कर वन में चले जाते हैं कि वह अपने पिता के पास लौट जायेगी, किन्तु दमयन्ती ऐसा नहीं करती और अपनी खोज जारी रखती है। उधर राजा नल भी भटकने लगते हैं और उन्हें कहाँ-कहाँ जाना पड़ता है, क्या-क्या करना पड़ता है, इस भाग में वर्णित है। दैव संयोग से ऐसा हो रहा है, इसका आभास दमयन्ती होता है। कथा पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें।
सम्मानित मित्रो, महाभारत की कथाओं में तेईसवीं कड़ी के रूप में प्रस्तुत है - ‘‘दमयन्ती का विरह’’। देवताओं के होते हुए भी दमयन्ती ने राजा नल का वरण किया और वे सुख से रहने लगे। उधर कलियुग और द्वापर भी उसी स्वयंवर में भाग लेने जा रहे थे, किन्तु जब उन्हें पता चला कि दमयन्ती ने देवताओं को छोड़कर राजा नल से विवाह किया, तो उन्होंने इसे अपमान समझा। वे इसका दण्ड देने की योजना बनाने लगे। उनकी कुटिल योजना क्या बनती है? किस प्रकार राजा नल एवं दमयन्ती के जीवन में कठिनाइयों के दौर प्रारंभ होते हैं। अब इस कथा में पढ़िये। पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें।