भ्रष्टाचारस्तु सर्वेषां, पापानां मूलकारणम्।
भ्रष्टाचारेण लोकानां, सन्मतिः क्षीयते सदा।।
भ्रष्टाचार का अर्थ भ्रष्ट आचरण से है। इसके लिए पैसे का लेन-देन होना आवश्यक नहीं है। यह मनुष्य के द्वारा किए गए उन सभी आचरणों के बारे में है जो वे परंपरागत एवं शास्त्रोक्त नियमों से च्युत होकर करते हैं। हमारे समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए रीति-रिवाजों तथा नियम-कानूनों को बनाया गया है। यही हमें मनुष्यता के निकट ले जाता है, अन्यथा पशु-पक्षी एवं कीट-पतंगों का भी समाज होता और वे भी हमारी ही तरह रहा करते।
यदि एक शिक्षक प्रतिदिन अपने नियम के अनुसार नहीं पढ़ाता है, समय पर विद्यालय नहीं जाता है, कक्षा में पढ़ाने के बजाय घर पर ट्यूशन देता है, बच्चों को सही शिक्षा नहीं देता है, नैतिक शिक्षा नहीं देता है, झूठ का सहारा लेता है, झूठ बोलता है तो वह भी भ्रष्ट आचरण करता है। एक आम नागरिक भी यदि अपने समाज के नियम-कानूनों के अनुसार कार्य नहीं करता है तो वह भी भ्रष्ट आचरण ही करता है।
एक व्यापारी मिलावट करता है, एक नेता जनता के बारे में नहीं सोचता है, एक खिलाड़ी ड्रग्स लेकर प्रतियोगिता जीतता है, एक व्यक्ति अपना काम करवाने के लिए अनियमित कार्य करता है, ट्रेन टिकट के लिए व्यक्ति सौ रूपये अधिक देता है, लाइन में न खड़ा होना पड़े इसलिए दस रुपये अधिक देकर तेल पाता है, एक साहित्यकार भाई-भतीजावाद के तहत साहित्य और साहित्यकार को पालता है, एक प्रकाशक चंद पैसों के लिए साहित्यकारों का दोहन करता है, ये सभी भ्रष्टाचार ही हैं, इसलिए भ्रष्टाचार को केवल उद्योगपतियों, व्यापारियों, प्रशासनिक अधिकारियों और राजनेताओं तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है।
यदि हम आत्मावलोकन करेंगे तो हममें से कोई भी भ्रष्टाचारी की इस पदवी से बरी नहीं हो सकता है। अतः विचार करने योग्य बात है कि भ्रष्टाचार क्या है? भ्रष्टाचार एक सोच है, एक समझ है, एक ऐसी स्थिति है जिस पर नियंत्रण केवल स्वयं के उत्तरदायित्व को निभा कर ही किया जा सकता है। झूठ बोलना, झूठी बातें बताकर सहानुभूति बटोरना, लोगों को भ्रमित करना, झूठ को सत्य साबित करना और स्वयं को सबसे योग्य मानना ये सभी भ्रष्ट मार्ग ही हैं। ये बहुत ही आकर्षक होते हैं और आम आदमी जिसके पास शिक्षा नहीं है, जिसके पास सोच नहीं है वह आसानी से आकर्षित हो भी हो जातजाता है।
क्या हम वह करेंगे जो हमें करना चाहिए? या फिर भड़भूंजे की तरह बजते रहेंगे?
सादर
विश्वजीत 'सपन'
Nice. But India mein imandari se apne aap ko dekhne ki reet nahin rahin hain. Hum log genetically paakhandi ho gaye hain!
ReplyDeletevinit जी, इसीलिए तो यह आवश्यक है कि हम दिल से भ्रष्टाचार का विरोध करना चाहिए मात्र ह्स्ब्दों से नहीं... बहुत-बहुत आभार आपका.
DeleteA good attempt! But things are getting better. There is a collective will for a change. Poverty has been the main cause. Hopefully with economic uplift of masses we can make our societies better.
ReplyDeleteGhanshyam ji, You are right but we have still a long way to go. Thank you for supporting my cause.
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