सम्मानित मित्रगण,
महाभारत की कथा की कड़ी में सत्रहवीं कथा का प्रकाशन।
‘‘क्षत्राणी विदुला का उद्बोधन’’
सिंधुराज संजय के पराजित हो जाने पर वह भयभीत हो जाता है। युद्धभूमि छोड़कर भाग जाता है। उसकी माता विदुला को यह पसंद नहीं आता। तब वह किस प्रकार अपने पुत्र को प्रेरित करती है, ताकि संधुराज अपने खोये राज्य को प्राप्त कर सके। कर्तव्य से विमुख को अपने कर्तव्य पथ पर लाने की यह कथा सभी के जीवन के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इसे पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें।
http://pawanprawah.com/admin/photo/up1884.pdf
http://pawanprawah.com/paper.php?news=1884&page=10&date=16-01-2017
सादर
विश्वजीत ‘सपन’
महाभारत की कथा की कड़ी में सत्रहवीं कथा का प्रकाशन।
‘‘क्षत्राणी विदुला का उद्बोधन’’
सिंधुराज संजय के पराजित हो जाने पर वह भयभीत हो जाता है। युद्धभूमि छोड़कर भाग जाता है। उसकी माता विदुला को यह पसंद नहीं आता। तब वह किस प्रकार अपने पुत्र को प्रेरित करती है, ताकि संधुराज अपने खोये राज्य को प्राप्त कर सके। कर्तव्य से विमुख को अपने कर्तव्य पथ पर लाने की यह कथा सभी के जीवन के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।
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http://pawanprawah.com/paper.php?news=1884&page=10&date=16-01-2017
सादर
विश्वजीत ‘सपन’
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