सम्मानित मित्रो, महाभारत की कथा के क्रम में बाइसवीं कड़ी के रूप में प्रस्तुत है - ‘‘दमयन्ती की दुविधा - भाग 2’’। हमने पढ़ा था कि राजा नल दमयन्ती के स्वयंवर में जा रहे थे। मार्ग में देवतागण मिले। उन्होंने उन्हें अपना दूत बनकर दमयन्ती के पास जाने को कहा। दूतकार्य समाप्त कर राजा नल पुनः देवताओं के पास गये। जब राजा नल ने भी स्वयंवर में प्रतिभाग करने की अनुमति माँगी, तो देवतागण घबरा गये कि उनके रहते दमयन्ती किसी और का वरण नहीं करेगी, तब देवताओं ने एक चाल चली। पढ़ें और आनंद लें। नीचे दिये लिंक को क्लिक करें।
सम्मानित मित्रगण, महाभारत की कहानियों के क्रम में प्रस्तुत है इसकी इक्कीसवीं कड़ी, जिसमें प्रस्तुत है ‘‘राजा नल’’ एवं ‘‘दमयन्ती’’ की कथा। यह कथा अत्यंन्त ही रोचक एवं पठनीय है। असल में जब यात्रा के क्रम में युधिष्ठिर महर्षि बृहदश्व से कहते हैं कि उनके जैसा दुर्भाग्यशाली राजा और कौन होगा? उनका राज्य हड़प लिया गया, उन्हें देश निकाला दे दिया गया, वे वन-वन भटक रहे हैं, उनकी पत्नी द्रौपदी को भी अपमानित किया गया आदि। तब महर्षि बृहदाश्व उन्हें सांत्वना देने के लिये नल एवं दमयन्ती की कथा सुनाते हैं कि इनके जीवन में तो अत्यधिक कठिन समय आया था। कथा बड़ी है, अतः इसे कई भागों में प्रस्तुत किया जायेगा। इसी कड़ी में प्रस्तुत है प्रथम भाग - ‘‘दमयन्ती का स्वयंवर - भाग 1’’। इसे पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें।
सम्मानित मित्रगण, महाभारत की कहानी के क्रम में बीसवीं कहानी ‘‘देवयानी का हठ’’ का दूसरा एवं अंतिम भाग प्रस्तुत है। हमने पहले भाग में पढ़ा कि देवयानी और शर्मिष्ठा में झगड़ा होता है। देवयानी नगर से जाने की बात करती है और असुरराज वृषपर्वा उसे मनाते हैं। देवयानी इस शर्त पर रुकती है कि शर्मिष्ठा उसकी दासी बनकर रहेगी। अब इस भाग में पता चलता है कि राजा ययाति का संबंध शर्मिष्ठा के साथ होता है और किस प्रकार देवयानी को इसका पता चलता है। तब वह क्या करती है? कैसे राजा ययाति अचानक बूढ़े हो जाते हैं और अपने उत्तराधिकारी का चयन करते हैं। पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें।
सम्मानित मित्रगण, महाभारत की कथाओं में उन्ननीवीं कड़ी के रूप में प्रस्तुत है ‘‘देवयानी का हठ’’ का पहला भाग। महाभारत के आदिपर्व में वैशम्पायन जी जनमेजय से देवताओं एवं असुरों के मध्य युद्धों एवं कच की संजीवनी विद्या को सीखने के बारे में बताया। इसी मध्य उन्होंने देवयानी एवं शमिष्ठा की कहानी भी बताई। देवयानी शुक्राचार्य की पुत्री थी और उसका झगड़ा असुरराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा के साथ हुआ करता था। एक दिन अवसर पाकर किस प्रकार देवयानी ने बदला लिया, इस कथा में वर्णित है। पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें।