"करम गति टारै नाहीं टरै"
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महाभारत की कथा में इकतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत छठी लोककथा - ‘‘करम गति टारै नाहीं टरै’’
यह कहानी गौतमी नामक एक वृद्धा की है, जिसके इकलौते पुत्र की मृत्यु सर्प के काटने से हो जाती है। एक बहेलिया ने उस सर्प को पकड़ लिया। वह उसे इस कृत्य के लिये दण्डित करना चाहता है। इस पर वाद-विवाद होता है और तब किस प्रकार मृत्यु एवं काल को अपना पक्ष रखना पड़ता है। और अंततः पता चलता है कि किस प्रकार उस बालक के पूर्व कर्म के कारण उसकी मृत्यु हुई है। कर्म का फल हमें इसी संसार में रहते हुए भुगतना पड़ता है। यही इस कथा का मुख्य संदेश है।
एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
http://pawanprawah.com/admin/photo/up2165.pdf
http://pawanprawah.com/paper.php?news=2165&page=10&date=08-05-2017
विश्वजीत ‘सपन’
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महाभारत की कथा में इकतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत छठी लोककथा - ‘‘करम गति टारै नाहीं टरै’’
यह कहानी गौतमी नामक एक वृद्धा की है, जिसके इकलौते पुत्र की मृत्यु सर्प के काटने से हो जाती है। एक बहेलिया ने उस सर्प को पकड़ लिया। वह उसे इस कृत्य के लिये दण्डित करना चाहता है। इस पर वाद-विवाद होता है और तब किस प्रकार मृत्यु एवं काल को अपना पक्ष रखना पड़ता है। और अंततः पता चलता है कि किस प्रकार उस बालक के पूर्व कर्म के कारण उसकी मृत्यु हुई है। कर्म का फल हमें इसी संसार में रहते हुए भुगतना पड़ता है। यही इस कथा का मुख्य संदेश है।
एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
http://pawanprawah.com/admin/photo/up2165.pdf
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विश्वजीत ‘सपन’
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