मन की बात
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दुःखं त्यक्तुं बद्धमूलोऽनुरागः स्मृत्वा स्मृत्वा याति दुःखं नवत्वम्।
यात्रा त्वेषा यद् विमुच्येह बाष्पं प्राप्तानृण्या याति बुद्धिः प्रसादम्।। - भास
अर्थात् बद्धमूल प्रेम को त्यागना कठिन है। स्मरण कर करके दुःख नवीनता को प्राप्त होता है। यह तो व्यवहार है कि आँसू बहाकर उऋण हुआ मन प्रसन्न हो लेता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि यदि प्रेम में कोई पूर्णतः आबद्ध हो जाता है तो उससे दूर होना अथवा उसे छोड़ देना कठिन होता है। यदि कोई बार-बार अपने दुःख को याद करता जाता है तो वह दुःख नये प्रकार से कष्ट देता है। और यह भी एक सत्य है और लोक व्यवहार में प्रचलित है कि आँसू बहाकर लोग अपने मन को हल्का कर लेते हैं। ~ सपन
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दुःखं त्यक्तुं बद्धमूलोऽनुरागः स्मृत्वा स्मृत्वा याति दुःखं नवत्वम्।
यात्रा त्वेषा यद् विमुच्येह बाष्पं प्राप्तानृण्या याति बुद्धिः प्रसादम्।। - भास
अर्थात् बद्धमूल प्रेम को त्यागना कठिन है। स्मरण कर करके दुःख नवीनता को प्राप्त होता है। यह तो व्यवहार है कि आँसू बहाकर उऋण हुआ मन प्रसन्न हो लेता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि यदि प्रेम में कोई पूर्णतः आबद्ध हो जाता है तो उससे दूर होना अथवा उसे छोड़ देना कठिन होता है। यदि कोई बार-बार अपने दुःख को याद करता जाता है तो वह दुःख नये प्रकार से कष्ट देता है। और यह भी एक सत्य है और लोक व्यवहार में प्रचलित है कि आँसू बहाकर लोग अपने मन को हल्का कर लेते हैं। ~ सपन