Tuesday, March 25, 2014

मन की बात

मन की बात
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दुःखं त्यक्तुं बद्धमूलोऽनुरागः स्मृत्वा स्मृत्वा याति दुःखं नवत्वम्।
यात्रा त्वेषा यद् विमुच्येह बाष्पं प्राप्तानृण्या याति बुद्धिः प्रसादम्।। - भास

अर्थात् बद्धमूल प्रेम को त्यागना कठिन है। स्मरण कर करके दुःख नवीनता को प्राप्त होता है। यह तो व्यवहार है कि आँसू बहाकर उऋण हुआ मन प्रसन्न हो लेता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि यदि प्रेम में कोई पूर्णतः आबद्ध हो जाता है तो उससे दूर होना अथवा उसे छोड़ देना कठिन होता है। यदि कोई बार-बार अपने दुःख को याद करता जाता है तो वह दुःख नये प्रकार से कष्ट देता है। और यह भी एक सत्य है और लोक व्यवहार में प्रचलित है कि आँसू बहाकर लोग अपने मन को हल्का कर लेते हैं। ~ सपन

Friday, March 21, 2014

धर्म का वास्तविक अर्थ (कथा)

मित्रों,
अभी कुछ दिनों पहले एक सुन्दर कथा पढ़ी तो सोचा आप सभी के साथ साझा करूँ।

प्राचीन काल की बात है। एक राजा ने अपने राज्य के सभी धर्मात्माओं को बुलाकर कहा कि आप सब लोग अपने-अपने धर्म के बारे में बताएँ, ताकि उनमें से किसी एक का मैं चयन कर सकूँ और अपना स
कूँ, जो सर्वश्रेष्ठ होगा।

अधिकतर धर्मात्माओं ने अपने-अपने धर्म की विस्तृत व्याख्या की और राजा से उस धर्म को अपनाने का आग्रह किया। किन्तु उनमें से एक धर्मात्मा बोला - "महाराज, मैं कल अपने धर्म की बात नदी के उस पार जाकर आपको बताऊँगा।"

राजा ने दूसरे दिन एक से बढ़कर एक नाव की व्यवस्था करवाई। फिर जब उन्होंने उस धर्मात्मा से एक-एक कर सभी नावों में चलने का आग्रह किया तो उस धर्मात्मा ने उन नावों से चलने को मना कर दिया। अंत में राजा कुपित हो उठे और बोले - "महात्मन, यह क्या आप जब किसी भी नाव से जाना ही नहीं चाहते तो आपने नाव मँगाई ही क्यों?"

तब वह महात्मा बोले - "राजन, यह सत्य है कि इनमें से सभी नाव हमें नदी के उस पार ही ले जायेंगे, ठीक इसी प्रकार सभी धर्म हमें मानवता रुपी नदी को पार करवाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी धर्मों का सार एक ही है।"

तब राजा को समझ आया कि धर्म का वास्तविक अर्थ क्या है।
 
प्रस्तुति
विश्वजीत 'सपन'