Wednesday, September 27, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 27

‘‘राजा की भूल’’ प्रथम भाग 
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महाभारत की कथा की 52वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


एक ब्राह्मण की गाय खोने की कथा
। इस कथा में निहित सन्देश को जानने के लिये इस कथा को पढ़ें। इसे पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।

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http://pawanprawah.com/paper.php?news=2487&page=10&date=25-09-2017 



विश्वजीत ‘सपन’

Sunday, September 24, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 26

‘‘गुरु की शिक्षा और परीक्षा’’
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महाभारत की कथा की 51वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


प्राचीन काल में गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत शिक्षा दी जाती थी। अनेक बार गुरु अपने शिष्य की परीक्षा लेते थे और उसमें भी शिक्षा छुपी होती थी। इस कथा में अयोद धौम्य ऋषि किस प्रकार अपने शिष्य उपमन्यु की परीक्षा लेते हैं और उसमें भी निरन्तर शिक्षा देते रहते हैं इसका एक सुन्दर उदाहरण दिया गया है। 

 
इसे विस्तार से जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


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विश्वजीत ‘सपन’

Thursday, September 14, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 25

‘‘तप की महिमा’’ अंतिम भाग 
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महाभारत की कथा की 50वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


यह कहानी एक ब्राह्मण की है, जो वेदाध्ययन कर स्वयं को ज्ञानवान मानता है। किन्तु जीवन के क्रम में उसे पता चलता है कि उसका ज्ञान अभी भी अधूरा है। वह इस अधूरे ज्ञान को पूर्ण करने की इच्छा में मिथिलानगरी जाता है। अब वह एक धर्मव्याध से मिलता है। बातों के क्रम में वह धर्मव्याध उसे जीवन के तप को करने का सुझाव देता है। वह तप क्या है?  


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विश्वजीत ‘सपन’

Saturday, September 9, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 24

‘‘तप की महिमा’’ (प्रथम भाग)
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महाभारत की कथा की 49वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


यह कहानी एक ब्राह्मण की है, जो वेदाध्ययन कर स्वयं को ज्ञानवान मानता है। किन्तु जीवन के क्रम में उसे पता चलता है कि उसका ज्ञान अभी भी अधूरा है। वह इस अधूरे ज्ञान को पूर्ण करने की इच्छा में मिथिलानगरी जाता है। उसे किस प्रकार इस ज्ञान की प्राप्ति होती है, इस कथा में बताया गया है। साथ वह क्या ज्ञान है, यह भी बताया गया है। 


इसे विस्तार से जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


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विश्वजीत ‘सपन’

Friday, September 1, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 23

‘‘गृहस्थ-धर्म की महिमा’’
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महाभारत की कथा की 48वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


हमारी संस्कृति में चार आश्रम बताये गये हैं - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास। उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण गृहस्थाश्रम को बताया गया है। यह असल में जीवन-कर्म करने का सबसे उपयुक्त समय बताया गया है। बिना इन कर्मों को किये जीवन के अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुँचा जा सकता। इस कथा में इसी गृहस्थ-धर्म की महत्ता बतायी गयी है। बिना इसकी यात्रा किये सभी प्रकार के तप भी विफल माने गये हैं। 


इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


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विश्वजीत ‘सपन’