Wednesday, December 27, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 40

‘‘धैर्य की परीक्षा’’ प्रथम भाग 
============================

महाभारत की कथा की 65वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। एक बार च्यवन ऋषि राजा कुशिक के धैर्य की परीक्षा लेने के विचार से उनके पास गये और उन्होंने शर्त रखी कि उन्हें मुनि की सभी बातें माननी होगी। राजा इसके लिये सहर्ष तैयार हो गये, किन्तु च्यवन ऋषि का तरीका हमेशा से ही विचित्र रहा है। यह कथा भी उनकी आश्चर्यजनक घटनाओं एवं तरीकों को सहजता से उजागर करती है। इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2712.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2712&page=10&date=25-12-2017

 विश्वजीत ‘सपन’

Saturday, December 23, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 39

‘‘समुद्रशोषण का वृतान्त’’
====================
 
महाभारत की कथा की 64वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। वृत्रासुर का आतंक बढ़ा हुआ था। ब्रह्मा जी के आदेश पर एक वज्र से इन्द्र ने वृत्रासुर का वध कर दिया, किन्तु कालकेय इसे अपना अपमान मानते रहे। उन्होंने समुद्र में जाकर शरण ली और रात्रि में आतंक मचाने के बाद पुनः समुद्र में जाकर छिपने लगे। कोई उपाय न देखकर देवतागण अगस्त्य मुनि के पास गये और उनसे समुद्र को पीने का अनुरोध किया। रहस्य एवं रोमांच से भरी यह कथा बड़ी अनूठी है और इससे आगे की कथा का भी जुड़ाव है। इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2696.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2696&page=10&date=18-12-2017



विश्वजीत ‘सपन’

Tuesday, December 19, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 38

‘‘मोहिनी तिलोत्तमा’’
===============
 
महाभारत की कथा की 63वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। सुन्द एवं उपसुन्द ने किसी और के द्वारा नहीं मारे जाने का वर प्राप्त कर लिष्या था। उसके बाद वे मनमानी करने लगे। परेशान होकर सभी लोग देवताओं के पास गये। देवतालोग ब्रह्मा जी के पास गये, तो उन्होंने तिलोत्तमा के निर्माण का कार्य विश्वकर्मा जी को दिया। तिलोत्तमा ने सुन्द एवं उपसुन्द में अपनी मोहिनी सूरत से फूट डाल दी और उसके बाद क्या हुआ इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2677.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2677&page=10&date=11-12-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Friday, December 15, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 37

‘‘परशुराम का गर्व’’ 
==============
 
महाभारत की कथा की 62वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
 

महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। परशुराम को अपने पराक्रम पर बड़ा गर्व था। श्रीराम की प्रसिद्धि सुनकर वे उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनके नगर गये और उनसे अपने धनुष को चढ़ाने को कहा। जब प्रभु श्रीराम ने सरलता से कार्य कर दिया, तब उन्होंने धनुष की डोरी को कान तक खींचने के लिये कहा। प्रभु श्रीराम समझ गये कि उनकी मंशा क्या थी। उसके बाद क्या हुआ इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।

http://pawanprawah.com/admin/photo/up2660.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2660&page=10&date=04-11-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Wednesday, December 6, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 36

‘‘मित्रता और कृतघ्नता’’ का द्वितीय एवं अंतिम भाग
===================================
 
महाभारत की कथा की 61वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। गौतम की सहायता करने के उद्देश्य से बकराज राजधर्मा उसे अपने मित्र विरूपाक्ष के पास भेजता है। विरूपाक्ष उसकी तत्काल सहायता करता है और गौतम प्रसन्न होकर धन के साथ अपने घर लौटने लगता है। मार्ग में उसकी भेंट पुनः राजधर्मा से होती है। उसके बाद क्या होता है, इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2644.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2644&page=10&date=27-11-2017



विश्वजीत ‘सपन’

Friday, December 1, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 35

‘‘मित्रता और कृतघ्नता’’ का प्रथम भाग
============================
 
महाभारत की कथा की 60वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। गौतम नामक एक ब्राह्मण था। उसने वेद का अध्ययन नहीं किया था और वह निर्धन था। दस्युओं की सहायता पाकर वह भी दस्यु जैसा ही व्यवहार करने लगा। अपने एक मित्र के सुझाव पर उसने उचित मार्ग से धन कमाने का प्रयास किया। तभी उसकी भेंट बकराज राजधर्मा से होती है। यह विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2628.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2628&page=10&date=20-11-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Saturday, November 18, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 34

‘‘अपराध का दण्ड आवश्यक है’’
=======================
 
महाभारत की कथा की 59वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। शंख एवं लिखित नामक दो भाई थे। लिखित से चोरी का आपराध हो गया। शंख ने उसे राजा के पास जाकर दण्ड प्राप्त करने को कहा। राजा ने पहले दण्ड देने से मना कर दिया। लिखित के अनुरोध पर उसे बड़ा ही कठोर दण्ड दे दिया। उसके बाद लिखित बड़ा दुःखी हुआ। वह अपने भाई के पास गया। फिर उसके भाई ने क्या किया? यह विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2612.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2612&page=10&date=13-11-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Thursday, November 9, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 33

‘‘ब्रह्म तेज की महिमा’’
================
 
महाभारत की कथा की 58वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। विश्वामित्र एक प्रतापी राजा हुए। एक बार उन्होंने मुनि वशिष्ठ की गाय नन्दिनी को बलात् ले जाने का प्रयास किया, तो नन्दिनी ने ब्रह्म तेज के प्रताप से सेना की उत्पत्ति की और विश्वामित्र की पूरी सेना को खदेड़ दिया। विश्वामित्र को उस दिन लगा कि ब्रह्म तेज के समक्ष क्षत्रिय तेज का कोई मोल नहीं। इस कथा को विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2596.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2596&page=10&date=06-11-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Saturday, November 4, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 32

‘‘छत्र और उपानह की कथा’’
====================
 
महाभारत की कथा की 57वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। तब तपती दोपहरी में कोई उपाय न था। जब ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका को इससे कष्ट हुआ, तो ऋषि ने सूर्य को ही समाप्त करने का निश्चय किया। इस प्रक्रिया में किस प्रकार छत्र और उपानह के प्रयोग को मान्यता मिली, इसे इस कथा के माध्यम से जाना जा सकता है। साथ ही भगवान् सूर्य ने इनकी महत्ता भी स्थापित की। इस कथा को विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2580.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2580&page=10&date=30~10~2017



विश्वजीत ‘सपन’

Sunday, October 29, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 31

‘‘ब्राह्मणत्व की प्रप्ति’’
===============
   
महाभारत की कथा की 56वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


प्राचीन काल में जाति का आधार कर्म हुआ करता था। देवता, मुनि या अपने कर्म के अनुसार व्यक्ति की जाति का निर्धारण होता था। तब कभी वीतहव्य नामक एक राजा हुए, जो बड़े प्रतापी थे। जब उनके ऊपर संकट आया तो वे भागकर ऋषि भृगु की शरण में गये। ऋषि ने उन्हें अभयदान दिया और अपने शिष्यों में सम्मिलित कर लिया। इस प्रकार उन्हें ब्राह्मणत्व की प्राप्ति हुई। इस कथा को विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2564.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2564&page=10&date=23-10-2017



विश्वजीत ‘सपन’

Friday, October 20, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 30

‘‘मुनि का संकल्प’’ 
********************
  
महाभारत की कथा की 55वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।


प्राचीन काल में मुनि गौतम के तीन पुत्रों में एकत और द्वित उतने प्रतिभावान नहीं थे। त्रित बड़े सफल रहे, अतः धन के लोभ में वे दोनों भाई त्रित से छुटकारा पाने का उपाय सोचने लगे। त्रित ने यज्ञादि करके अनेक पशुओं का धन-संचय कर लिया था। ये दोनों भाई चाहते थे कि वह सारा धन इन्हें मिल जाये। दैवयोग से एक दिन वन में उन्हें ऐसा अवसर भी मिल गया। तब वे घर आकर सुख-चैन से रहने लगे। उधर त्रित ने सोमरस के अपने संकल्प को पूरा करने का निर्णय लिया। उसके बाद क्या हुआ इसे जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2534.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2534&page=10&date=16-10-2017

विश्वजीत ‘सपन’

Friday, October 13, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 29

‘‘मुनि का मूल्य’’
============
   
महाभारत की कथा की 54वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।


प्राचीन काल में च्यवन नामक मुनि ने जल में रहकर तप करने का निश्चय किया। एक दिन मल्लाहों ने उसी स्थल पर जाल फेंका जहाँ वे तप कर रहे थे। तब मछलियों आदि के साथ मुनि भी जाल में फँसकर बाहर आ गये। यह देख मल्लाह भयभीत हो गये। वे भागे-भागे अपने राजा के पास गये। उसके बाद क्या हुआ इसे जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2519.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2519&page=10&date=09-10-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Wednesday, October 4, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 28

‘‘राजा की भूल’’ अंतिम भाग 
=====================
 
महाभारत की कथा की 53वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


अभी तक आपने पढ़ा कि दूसरे ब्राह्मण ने पहले ब्राह्मण को उसकी गाय देने से मना कर दिया। वह पहला ब्राह्मण मात्र अपनी गाय को वापस लेने पर ही टिका हुआ था। राजा नृग के लिये बड़ी विकट परिस्थिति थी। उन्होंने किस प्रकार इसका समाधान निकाला और उसके बाद क्या हुआ इसे जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2503.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2503&page=10&date=02-10-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Wednesday, September 27, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 27

‘‘राजा की भूल’’ प्रथम भाग 
==================== 

महाभारत की कथा की 52वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


एक ब्राह्मण की गाय खोने की कथा
। इस कथा में निहित सन्देश को जानने के लिये इस कथा को पढ़ें। इसे पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।

http://pawanprawah.com/admin/photo/up2487.pdf 

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2487&page=10&date=25-09-2017 



विश्वजीत ‘सपन’

Sunday, September 24, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 26

‘‘गुरु की शिक्षा और परीक्षा’’
<><><><><><><><><><>
 
महाभारत की कथा की 51वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


प्राचीन काल में गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत शिक्षा दी जाती थी। अनेक बार गुरु अपने शिष्य की परीक्षा लेते थे और उसमें भी शिक्षा छुपी होती थी। इस कथा में अयोद धौम्य ऋषि किस प्रकार अपने शिष्य उपमन्यु की परीक्षा लेते हैं और उसमें भी निरन्तर शिक्षा देते रहते हैं इसका एक सुन्दर उदाहरण दिया गया है। 

 
इसे विस्तार से जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2471.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2471&page=10&date=18-09-2017

विश्वजीत ‘सपन’

Thursday, September 14, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 25

‘‘तप की महिमा’’ अंतिम भाग 
<><><><><><><><><><><>

महाभारत की कथा की 50वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


यह कहानी एक ब्राह्मण की है, जो वेदाध्ययन कर स्वयं को ज्ञानवान मानता है। किन्तु जीवन के क्रम में उसे पता चलता है कि उसका ज्ञान अभी भी अधूरा है। वह इस अधूरे ज्ञान को पूर्ण करने की इच्छा में मिथिलानगरी जाता है। अब वह एक धर्मव्याध से मिलता है। बातों के क्रम में वह धर्मव्याध उसे जीवन के तप को करने का सुझाव देता है। वह तप क्या है?  


इसे विस्तार से जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2454.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2454&page=10&date=11-09-2017



विश्वजीत ‘सपन’

Saturday, September 9, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 24

‘‘तप की महिमा’’ (प्रथम भाग)
=====================
 
महाभारत की कथा की 49वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


यह कहानी एक ब्राह्मण की है, जो वेदाध्ययन कर स्वयं को ज्ञानवान मानता है। किन्तु जीवन के क्रम में उसे पता चलता है कि उसका ज्ञान अभी भी अधूरा है। वह इस अधूरे ज्ञान को पूर्ण करने की इच्छा में मिथिलानगरी जाता है। उसे किस प्रकार इस ज्ञान की प्राप्ति होती है, इस कथा में बताया गया है। साथ वह क्या ज्ञान है, यह भी बताया गया है। 


इसे विस्तार से जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2438.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2438&page=10&date=04-09-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Friday, September 1, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 23

‘‘गृहस्थ-धर्म की महिमा’’
==================
 
महाभारत की कथा की 48वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


हमारी संस्कृति में चार आश्रम बताये गये हैं - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास। उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण गृहस्थाश्रम को बताया गया है। यह असल में जीवन-कर्म करने का सबसे उपयुक्त समय बताया गया है। बिना इन कर्मों को किये जीवन के अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुँचा जा सकता। इस कथा में इसी गृहस्थ-धर्म की महत्ता बतायी गयी है। बिना इसकी यात्रा किये सभी प्रकार के तप भी विफल माने गये हैं। 


इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2421.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2421&page=10&date=28-08-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Friday, August 25, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 22

‘‘अन्न-दान की महत्ता’’ 
================
 
महाभारत की कथा की 47वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


हमारे शास्त्रों में न केवल दान की महत्ता है, बल्कि अन्न-दान की भी अत्यधिक महत्ता है। अपना जीवन सभी जीते हैं, किन्तु जो मनुष्य अपने से अधिक दूसरे के लिये जीता है, असल में वही मनुष्य कहलाने की योग्यता रखता है। इस कथा में एक ब्राह्मण और उसके परिवार की इस बड़े त्याग के बारे में बड़े ही रोचक ढंग से कथाकार ने बताया है। अतिथि के लिये अपने भोजन की वस्तुओं का पूर्णतः दान कर देना मात्र भारतीय संस्कृति में ही संभव है। 


इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2405.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2405&page=10&date=21-08-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Monday, August 21, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 21

‘‘क्षमादान ही महादान’’
<><>><<><>><<><> 

महाभारत की कथा की 46वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


एक बार शक्ति मुनि एवं कल्माषपाद के मध्य झगड़ा हो जाता है। राजा कल्माष्पाद ने क्रोध में आकर शक्ति मुनि को चाबुक दे मारा। मुनि ने उन्हें राक्षस बनने का शाप दे दिया। तब कल्माषपाद ने उन्हें ही खा लिया। मुनि के पुत्र पराशर ने उन्हें नष्ट करने का बीड़ा उठाया। उसके बाद क्या हुआ, यह जानने के लिये इस कथा को पढ़ें और देखें कि क्षमादान का महत्त्व हमारे शास्त्रों में कितना प्रबल है। 

 
इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2389.pdf 

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2389&page=10&date=14-08-2017 



विश्वजीत ‘सपन’

Sunday, August 13, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 20

‘‘धर्म का माहात्म्य’’ 
==============
 
महाभारत की कथा की 45वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


एक ब्राह्मण कुण्डधार की पूजा कर धन संपादित करने में असफल होने पर कुण्डधार से रुष्ट हो जाता है। उसे धन चाहिए था, किन्तु कुण्डधार ने उसके लिये धर्म को चुना। इससे वह ब्राह्मण बहुत दुःखी हो गया। जब कुण्डधार की कृपा से उसे दिव्य-दृष्टि मिली, तो उसने अनुभव किया कि कुण्डधार ने उसके लिये उचित किया था। ऐसा क्यों हुआ? इसे विस्तार में जानने के लिये यह कथा पढ़ें।

 
इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2357.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2357&page=10&date=31-07-2017

विश्वजीत ‘सपन’

Sunday, August 6, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 19

‘‘ऋषियों का धर्म’’
=============
 
महाभारत की कथा की 44वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।


एक बार अकाल पड़ जाने पर ऋषियों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्हें प्रलोभन भी दिया जाता है, किन्तु ऋषिगण अपने धर्म का पालन करते हैं और तब ईश्वर न केवल उनकी सहायता करते हैं, बल्कि संकट आने पर उनकी प्राण-रक्षा भी करते हैं। इसे विस्तार में जानने के लिये यह कथा पढ़ें।  


इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2357.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2357&page=10&date=31-07-2017




विश्वजीत ‘सपन’

Tuesday, August 1, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 18

‘‘मुनि उत्तंक की गुरु-भक्ति’’
====================

महाभारत की कथा की 43वीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा का द्वितीय एवं अंतिम भाग।


मुनि उत्तंक जब अपने गुरु गौतम से आज्ञा लेकर जाने लगे, तब उन्होंने गुरु दक्षिणा देने की बात की। गुरु ने गुरु दक्षिणा लेने से मना कर दिया। फिर वे गुरु-पत्नी के पास गये, तो उन्होंने भी गुरु दक्षिणा लेने से मना का दिया। तब उत्तंक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अवश्य कुछ न कुछ लें। तब गुरु-पत्नी उनसे मणिमय कुण्डल लाने को कहा। वे अपने गंतव्य पर पहुँच गये, किन्तु क्या उनके लिये यह आसान होगा। इसे विस्तार में जानने के लिये यह कथा पढ़ें। 


इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2341.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2341&page=10&date=24-07-2017

 
विश्वजीत ‘सपन’

Saturday, July 22, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 17

‘‘मुनि उत्तंक की गुरु-भक्ति’’
====================

महाभारत की कथा की 42वीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा का प्रथम भाग।


गुरु-भक्ति पर एक से एक कथा बनी है और उनमें से एक है मुनि उत्तंक की। मुनि उत्तंक जब अपने गुरु गौतम से आज्ञा लेकर जाने लगे, तब उन्होंने गुरु दक्षिणा देने की बात की। गुरु ने गुरु दक्षिणा लेने सक मना कर दिया। फिर वे गुरु-पत्नी के पास गये, तो उन्होंने भी गुरु दक्षिणा लेने से मना का दिया। तब उत्तंक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अवश्य कुछ न कुछ लें, अन्यथा उनके लिये जाना संभव नहीं होगा। तब गुरु-पत्नी उनसे मणिमय कुण्डल लाने को कहा। उसके बाद क्या-क्या हुआ इसे विस्तार में जानने के लिये यह कथा पढ़ें। 


एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2325.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2325&page=10&date=17-07-2017



विश्वजीत ‘सपन’

Monday, July 17, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 16

‘‘बलवान शत्रु से कभी न करें बैर’’ 
<><><><><><><><><><><><><><><><>
 
महाभारत की कथा की 41वीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
      
गर्व का कारण कुछ भी हो सकता है, किन्तु घमण्ड नहीं होना चाहिए। घमण्ड बुद्धि को नष्ट कर देता है और तब हमें ज्ञात नहीं होता कि हम क्या कर रहे हैं। इस कथा में एक सेमल के वृक्ष के माध्यम से इस शीर्षक को विस्तार दिया गया है कि अपने से बलवान शत्रु से कभी भी बैर नहीं करना चाहिए, क्योंकि तब हार निश्चित होती है। साथ ही यह भी संदेश है कि घमण्ड नहीं करना चाहिए। एक नाटकीय तरीके से इस रहस्य को और तथ्य को इस कथा में समझाया गया है। इसे विस्तार में जानने के लिये यह कथा पढ़ें।  


एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/paper.php?news=2309&page=10&date=10-07-2017

Thursday, July 6, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 15

‘‘स्त्री-रक्षा परम धर्म है’’ 
<><><><><><><><><><><><>

महाभारत की कथा की चालीसवीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
‘‘स्त्री-रक्षा परम धर्म है’’

     
देवशर्मा नामक ऋषि ने अपने शिष्य विपुल को गुरुपत्नी की रक्षा करने का आदेश दिया, क्योंकि रुचि पर देवराज इन्द्र आसक्त थे। यह बड़ी चुनौती थी, जिसका विपुल ने अपनी बुद्धि से सामना किया और सफल भी हुआ। तब लज्जित होकर इन्द्र को भागना पड़ा। फिर भी विपुल से एक अपराध हो गया। वह दण्ड का भागीदार हो गया। यह सब कैसे हुआ? क्या उसे दण्ड मिला? इसे विस्तार में जानने के लिये इस कथा को पढ़ें। 


एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2293.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2293&page=10&date=03-07-2017


विश्वजीत ‘सपन’

Thursday, June 29, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 14

‘‘त्याग का माहात्म्य’’ 
<><><><><><><><>
 
महाभारत की कथा की उनचालीसवीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
‘‘त्याग का माहात्म्य’’  

   
त्याग का माहात्म्य अर्थात् त्याग की महत्ता। यह कथा दो पक्षियों की है, वे सुख से रह रहे थे। जब उन्होंने एक बहेलिये के दुःख को जाना तो उन्होंने किस प्रकार उसकी सहायता करने का प्रयास किया और किन परिस्थ्तिियों में उन्होंने आपने प्राण देकर उसका भला करना चाहा, इस कथा में वर्णित है। उसके बाद किस प्रकार बहेलिये का जीवन परिवर्तित हुआ, यह भी दर्शनीय है। इसे विस्तार में जानने के लिये इस कथा को पढ़ें। 


एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2277.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2277&page=10&date=26-06-2017






विश्वजीत ‘सपन’

Friday, June 23, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 13

‘‘अपनों से विवाद होता है घातक’’ 
========================
 
महाभारत की कथा की अड़तीसवीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
‘‘अपनों से विवाद होता है घातक’’  

   
यह कथा दो पक्षियों की है, जिनमें अत्यधिक प्रेम था। सभी पशु-पक्षी उनके इस प्रेम का उदाहरण दिया करते थे। फिर एक दिन दैववश वे एक मुसीबत में फँस गये। उन्होंने उस मुसीबत से छुटकारे का प्रयास किया। पहले वे सफल भी रहे, किन्तु एक बार उनके मध्य विवाद हुआ, तो कैसे किसी दूसरे ने इसका लाभ उठाया इसे विस्तार में जानने के लिये इस कथा को पढ़ें। 


एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2261.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2261&page=10&date=19-06-2017



विश्वजीत ‘सपन’

Thursday, June 15, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 12

‘‘अच्छा आचरण ही दिलाता है मान-सम्मान’’ 
===========================================
 
महाभारत की कथा की सैंतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
   
प्राचीन काल की बात है। एक बार इन्द्र का राज्य छिन जाता है। यह राज्य प्रह्लाद नामक एक दैत्य को चला जाता है। उसकी सफलता जानने के प्रयास में इन्द्र उसके पास एक ब्राह्मण बनकर जाते हैं और रहस्य जानकर पुनः अपने पद को प्राप्त करते हैं। इस कथा में आचरण की महत्ता स्थापित की गयी है। इसे विस्तार में जानने के लिये इस कथा को पढ़ें।

 
एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2245.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2245&page=10&date=12-06-2017

 


विश्वजीत ‘सपन’

Sunday, June 11, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 11

‘‘कार्य में विलम्ब घातक है’’
====================
 
महाभारत की कथा में छत्तीसवीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
‘‘कार्य में विलम्ब घातक है’’ 

   
प्राचीन काल की बात है। एक घने जंगल में एक तालाब था। उसमें तीन मछलियाँ रहती थीं। तीनों अपने-अपने गुणों के अनुसार कार्य करती थीं। एक बार जब संकट आने का अंदेशा हुआ, तब तीनों ही मछलियों ने अपने-अपने गुणों के अुनसार निर्णय लिया। फिर क्या हुआ, इसे जानने के लिये इस कथा को पढ़ें।

 
एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2229.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2229&page=10&date=05-06-2017


विश्वजीत ‘सपन’