‘‘शत्रु से सदा सावधान रहना चाहिए’’
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महाभारत की कथा में चौंतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत नौवीं लोककथा - ‘‘शत्रु से सदा सावधान रहना चाहिए’’
प्राचीन काल की बात है। काम्पिल्य नगर के राजा ब्रह्मदत्त बहुत ही न्यायप्रिय राजा थे। उनके महल में पूजनी नामक एक चिड़िया रहती थी, जो उस महल को अपना घर समझती थी। एक दिन उसके अण्डे से एक बच्चा निकला और उसी दिन रानी ने भी एक कुमार को जन्म दिया। दोनों एक साथ पलने और बढ़ने लगे। फिर अचानक एक दिन एक अनहोनी हो गयी। तब क्या होता है, जानने के लिये इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘घमण्डी कौआ’’
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महाभारत की कथा में तैंतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत आठवीं लोककथा - ‘‘घमण्डी कौआ’’
यह कहानी एक कौआ और हंस की है। वह कौआ दूसरों के जूठन पर पलता हुआ, बहुत घमण्डी हो गया था। जब उसने हंस को देखा, तो उसे बहुत ईर्ष्या हुई और उसने हंस को उड़ान भरने की चुनौती दी। वह चाहता था कि जब वह जीत जायेगा, तो लोग उसके उस रूप के बाद भी उसे ही सर्वश्रेष्ठ मानने लगेंगे। उसे पसंद करने लगेंगे। सारे कौए उसके साथ थे, किन्तु प्रतियोगिता के दिन असल में क्या होता है, इसका विवरण इस कहानी में मिलता है।
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विश्वजीत ‘सपन’
"करम गति टारै नाहीं टरै"
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महाभारत की कथा में इकतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत छठी लोककथा - ‘‘करम गति टारै नाहीं टरै’’
यह कहानी गौतमी नामक एक वृद्धा की है, जिसके इकलौते पुत्र की मृत्यु सर्प के काटने से हो जाती है। एक बहेलिया ने उस सर्प को पकड़ लिया। वह उसे इस कृत्य के लिये दण्डित करना चाहता है। इस पर वाद-विवाद होता है और तब किस प्रकार मृत्यु एवं काल को अपना पक्ष रखना पड़ता है। और अंततः पता चलता है कि किस प्रकार उस बालक के पूर्व कर्म के कारण उसकी मृत्यु हुई है। कर्म का फल हमें इसी संसार में रहते हुए भुगतना पड़ता है। यही इस कथा का मुख्य संदेश है।
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विश्वजीत ‘सपन’
दृढ़ निश्चय ही दिलाती है सफलता
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महाभारत की कथा में इकतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत छठी लोककथा - ‘‘दृढ़ निश्चय ही दिलाती है सफलता’’
एक इंसान के इकलौते पुत्र की मृत्यु हो जाती है। वह शव लेकर श्मशान जाता है। सियार और गिद्ध अपने-अपने प्रयोजन से उन्हें कभी रोकने और कभी जाने के लिये कहते रहते हैं, तब उस व्यक्ति में भी आशा का संचार होता है कि हो सकता हो कि किसी प्रकार उसका पुत्र भी जीवित हो जाये। उसने ईश्वर से प्रार्थना की और उसे सफलता मिली। एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’