‘‘अष्टावक्र का जन्म’’
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महाभारत की कथा की 73वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
यह एक अनूठी कहानी है, जिसमें अष्टावक्र ने गर्भ से ही बोलना प्रारंभ कर दिया था। एक बार उसके पिता वेदाध्ययन कर रहे थे, तो कुछ अनुचित पाठ कर गये। उसे सुनकर गर्भ में पल रहे शिशु उन्हें टोक दिया। तब क्रोध में आकर उसके पिता ने उसे शाप दे दिया कि वह आठ अंगों से टेढ़ा होगा। उसके बाद क्या होता है, इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘महामत्स्य का उपाख्यान’’
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महाभारत की कथा की 72वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
यह एक अनूठी कहानी है, जिसमें सृष्टि के प्रलय एवं पुनः सृजन की कथा कही गयी है। सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु को प्रजापति ने सृष्टि के पुनर्निर्माण के लिये चुना। उन्होंने मत्स्य बनकर उनकी शरण ली और अंततः अपने उद्देश्य को बताकर उसे पूरा करने का आदेश दिया। कथा बड़ी रोचक और मनभावन है। आप भी पढ़ें और आनन्द लें। इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘ब्राह्मणत्व की प्राप्ति’’
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महाभारत की कथा की 71वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
यह एक अनूठी कहानी है, जिसमें प्रतापी राजा गाधि के पुत्र विश्वामित्र की कथा है। किस प्रकार उनकी सेना को पराजय मिलती है और किस प्रकार वे ब्राह्मणत्व की प्रप्ति हेतु तप करते हैं। इस कथा से यह प्रमाण भी मिलता है कि पूर्वकाल में जाति कर्म के आधार पर होती थी न कि जन्म के आधार पर। आप भी पढ़ें और आनन्द लें। इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘पुरुष कोख से उत्पन्न बालक’’
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महाभारत की कथा की 70वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
यह एक अनूठी कहानी है, जिसमें युवनाश्व नामक राजा की भूल के कारण उसे गर्भ ठहर जाता है। उन्हें पुत्र की प्राप्ति करनी थी। उसके बाद क्या होता है, वह अविश्वसनीय है, किन्तु यह कथा अनेक संकेत कर रही है और हमें सोचने पर विवश कर रही है। आप भी पढ़ें और आनन्द लें। इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’