Sunday, January 28, 2018

महाभारत की लोककथा - भाग 44

‘विन्ध्याचल का क्रोध’’ 
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महाभारत की कथा की 69वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


सूर्यदेव प्रतिदिन सुमेरु की प्रदक्षिणा करते थे। यह विन्ध्याचल को अच्छा नहीं लगता था। उसने जब सूर्यदेव से कहा कि वह उसकी भी प्रदक्षिणा करे, किन्तु सूर्यदेव ने कहा कि यह संभव न हो सकेगा, क्योंकि जगत के रचनाकार का बनाया नियम है। तब विन्ध्याचल ने क्रोध में आकर बढ़ना प्रारंभ कर दिया, ताकि सूर्य का मार्ग रोक सके। उसके बाद क्या हुआ, इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


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विश्वजीत ‘सपन’

Tuesday, January 16, 2018

महाभारत की लोककथा - भाग 43

‘‘गंगावतरण की कथा’’ का अंतिम भाग
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महाभारत की कथा की 68वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
 

अभी तक हमने पढ़ा कि राजा सगर ने अपनी शक्ति-प्रदर्शन के लिये अश्वमेध यज्ञ कर अश्व को पृथ्वी पर छोड़ दिया और सगरपुत्रों को उसकी रक्षा में लगा दिया। साठ सहस्र सगरपुत्रों को कपिल मुनि के तेज ने नष्ट कर दिया। उसके बाद राजा सगर एवं उनके वंशज क्या-क्या करते हैं और किस प्रकार सगरपुत्रों को मुक्ति मिलती है, यह इस आगे भाग में वर्णित है। इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।

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विश्वजीत ‘सपन’

Thursday, January 11, 2018

महाभारत की लोककथा - भाग 42

‘‘गंगावतरण की कथा’’ का प्रथम भाग 
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महाभारत की कथा की 67वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। राजा सगर ने महादेव से पुत्र प्राप्ति का वर लिया। उन्हें एक रानी से एक पुत्र और दूसरी रानी से एक सहस्र पुत्र प्राप्त हुए। तब सगर ने अपनी शक्ति-प्रदर्शन के लिये अश्वमेध यज्ञ कर अश्व को पृथ्वी पर छोड़ दिया और सगरपुत्रों को उसकी रक्षा में लगा दिया। इसके बाद क्या-क्या होता है, इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।



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विश्वजीत ‘सपन’

Thursday, January 4, 2018

महाभारत की लोककथा - भाग 41

‘‘धैर्य की परीक्षा’’ अंतिम भाग 
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महाभारत की कथा की 66वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। एक बार च्यवन ऋषि राजा कुशिक के धैर्य की परीक्षा लेने के विचार से उनके पास गये और उन्होंने शर्त रखी कि उन्हें मुनि की सभी बातें माननी होगी। उनकी परीक्षा कठिन से कठिन होती चली गयी और प्रजा हाहाकार कर उठी। राजा कुशिक क्या उस परीक्षा में सफल हो पाये? इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।

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विश्वजीत ‘सपन’