Friday, March 21, 2014

धर्म का वास्तविक अर्थ (कथा)

मित्रों,
अभी कुछ दिनों पहले एक सुन्दर कथा पढ़ी तो सोचा आप सभी के साथ साझा करूँ।

प्राचीन काल की बात है। एक राजा ने अपने राज्य के सभी धर्मात्माओं को बुलाकर कहा कि आप सब लोग अपने-अपने धर्म के बारे में बताएँ, ताकि उनमें से किसी एक का मैं चयन कर सकूँ और अपना स
कूँ, जो सर्वश्रेष्ठ होगा।

अधिकतर धर्मात्माओं ने अपने-अपने धर्म की विस्तृत व्याख्या की और राजा से उस धर्म को अपनाने का आग्रह किया। किन्तु उनमें से एक धर्मात्मा बोला - "महाराज, मैं कल अपने धर्म की बात नदी के उस पार जाकर आपको बताऊँगा।"

राजा ने दूसरे दिन एक से बढ़कर एक नाव की व्यवस्था करवाई। फिर जब उन्होंने उस धर्मात्मा से एक-एक कर सभी नावों में चलने का आग्रह किया तो उस धर्मात्मा ने उन नावों से चलने को मना कर दिया। अंत में राजा कुपित हो उठे और बोले - "महात्मन, यह क्या आप जब किसी भी नाव से जाना ही नहीं चाहते तो आपने नाव मँगाई ही क्यों?"

तब वह महात्मा बोले - "राजन, यह सत्य है कि इनमें से सभी नाव हमें नदी के उस पार ही ले जायेंगे, ठीक इसी प्रकार सभी धर्म हमें मानवता रुपी नदी को पार करवाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी धर्मों का सार एक ही है।"

तब राजा को समझ आया कि धर्म का वास्तविक अर्थ क्या है।
 
प्रस्तुति
विश्वजीत 'सपन'

2 comments:

  1. kripaya kuran padhe jo kahta hai iid namaj ke pashchat purtipujako ki jaha pao katl kar do----!

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    1. सूबेदार जी पटना जी, मैं नहीं जानता कि कुरान ऐसा कहता है, लेकिन मानवता का धर्म यही कहता है. आभार आपका प्रतिक्रिया के लिए.

      सादर नमन

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