‘‘तप की महिमा’’ अंतिम भाग
<><><><><><><><><><><>
महाभारत की कथा की 50वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
यह कहानी एक ब्राह्मण की है, जो वेदाध्ययन कर स्वयं को ज्ञानवान मानता है। किन्तु जीवन के क्रम में उसे पता चलता है कि उसका ज्ञान अभी भी अधूरा है। वह इस अधूरे ज्ञान को पूर्ण करने की इच्छा में मिथिलानगरी जाता है। अब वह एक धर्मव्याध से मिलता है। बातों के क्रम में वह धर्मव्याध उसे जीवन के तप को करने का सुझाव देता है। वह तप क्या है?
इसे विस्तार से जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
http://pawanprawah.com/admin/photo/up2454.pdf
http://pawanprawah.com/paper.php?news=2454&page=10&date=11-09-2017
विश्वजीत ‘सपन’
<><><><><><><><><><><>
महाभारत की कथा की 50वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
यह कहानी एक ब्राह्मण की है, जो वेदाध्ययन कर स्वयं को ज्ञानवान मानता है। किन्तु जीवन के क्रम में उसे पता चलता है कि उसका ज्ञान अभी भी अधूरा है। वह इस अधूरे ज्ञान को पूर्ण करने की इच्छा में मिथिलानगरी जाता है। अब वह एक धर्मव्याध से मिलता है। बातों के क्रम में वह धर्मव्याध उसे जीवन के तप को करने का सुझाव देता है। वह तप क्या है?
इसे विस्तार से जानने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
http://pawanprawah.com/admin/photo/up2454.pdf
http://pawanprawah.com/paper.php?news=2454&page=10&date=11-09-2017
विश्वजीत ‘सपन’
No comments:
Post a Comment