‘‘गृहस्थ-धर्म की महिमा’’
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महाभारत की कथा की 48वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
हमारी संस्कृति में चार आश्रम बताये गये हैं - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास। उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण गृहस्थाश्रम को बताया गया है। यह असल में जीवन-कर्म करने का सबसे उपयुक्त समय बताया गया है। बिना इन कर्मों को किये जीवन के अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुँचा जा सकता। इस कथा में इसी गृहस्थ-धर्म की महत्ता बतायी गयी है। बिना इसकी यात्रा किये सभी प्रकार के तप भी विफल माने गये हैं।
इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
http://pawanprawah.com/admin/photo/up2421.pdf
http://pawanprawah.com/paper.php?news=2421&page=10&date=28-08-2017
विश्वजीत ‘सपन’
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महाभारत की कथा की 48वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
हमारी संस्कृति में चार आश्रम बताये गये हैं - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास। उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण गृहस्थाश्रम को बताया गया है। यह असल में जीवन-कर्म करने का सबसे उपयुक्त समय बताया गया है। बिना इन कर्मों को किये जीवन के अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुँचा जा सकता। इस कथा में इसी गृहस्थ-धर्म की महत्ता बतायी गयी है। बिना इसकी यात्रा किये सभी प्रकार के तप भी विफल माने गये हैं।
इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
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