‘‘त्याग का माहात्म्य’’
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महाभारत की कथा की उनचालीसवीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
‘‘त्याग का माहात्म्य’’
त्याग का माहात्म्य अर्थात् त्याग की महत्ता। यह कथा दो पक्षियों की है, वे सुख से रह रहे थे। जब उन्होंने एक बहेलिये के दुःख को जाना तो उन्होंने किस प्रकार उसकी सहायता करने का प्रयास किया और किन परिस्थ्तिियों में उन्होंने आपने प्राण देकर उसका भला करना चाहा, इस कथा में वर्णित है। उसके बाद किस प्रकार बहेलिये का जीवन परिवर्तित हुआ, यह भी दर्शनीय है। इसे विस्तार में जानने के लिये इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘अपनों से विवाद होता है घातक’’
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महाभारत की कथा की अड़तीसवीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
‘‘अपनों से विवाद होता है घातक’’
यह कथा दो पक्षियों की है, जिनमें अत्यधिक प्रेम था। सभी पशु-पक्षी उनके इस प्रेम का उदाहरण दिया करते थे। फिर एक दिन दैववश वे एक मुसीबत में फँस गये। उन्होंने उस मुसीबत से छुटकारे का प्रयास किया। पहले वे सफल भी रहे, किन्तु एक बार उनके मध्य विवाद हुआ, तो कैसे किसी दूसरे ने इसका लाभ उठाया इसे विस्तार में जानने के लिये इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘अच्छा आचरण ही दिलाता है मान-सम्मान’’
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महाभारत की कथा की सैंतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
प्राचीन काल की बात है। एक बार इन्द्र का राज्य छिन जाता है। यह राज्य प्रह्लाद नामक एक दैत्य को चला जाता है। उसकी सफलता जानने के प्रयास में इन्द्र उसके पास एक ब्राह्मण बनकर जाते हैं और रहस्य जानकर पुनः अपने पद को प्राप्त करते हैं। इस कथा में आचरण की महत्ता स्थापित की गयी है। इसे विस्तार में जानने के लिये इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘कार्य में विलम्ब घातक है’’
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महाभारत की कथा में छत्तीसवीं कड़ी में प्रस्तुत एक लोककथा।
‘‘कार्य में विलम्ब घातक है’’
प्राचीन काल की बात है। एक घने जंगल में एक तालाब था। उसमें तीन मछलियाँ रहती थीं। तीनों अपने-अपने गुणों के अनुसार कार्य करती थीं। एक बार जब संकट आने का अंदेशा हुआ, तब तीनों ही मछलियों ने अपने-अपने गुणों के अुनसार निर्णय लिया। फिर क्या हुआ, इसे जानने के लिये इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘शरणागत की रक्षा’’
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महाभारत की कथा में पैंतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत दसवीं लोककथा - ‘‘शरणागत की रक्षा’’
प्राचीन काल की बात है। उशीनगर नामक एक राज्य था। वहाँ का राजा वृषदर्भ बहुत ही न्यायप्रिय एवं दयालु था। जब एक कबूतर उनकी शरण में आया और फिर एक बाज भी उसका पीछा करते हुए आया, तब एक अजीब-सी स्थिति उत्पन्न हो गयी। वाद-विवाद हुआ और अनेक आश्चर्यजनक घटनायें घटीं। इन्हें जानने के लिये इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘शत्रु से सदा सावधान रहना चाहिए’’
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महाभारत की कथा में चौंतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत नौवीं लोककथा - ‘‘शत्रु से सदा सावधान रहना चाहिए’’
प्राचीन काल की बात है। काम्पिल्य नगर के राजा ब्रह्मदत्त बहुत ही न्यायप्रिय राजा थे। उनके महल में पूजनी नामक एक चिड़िया रहती थी, जो उस महल को अपना घर समझती थी। एक दिन उसके अण्डे से एक बच्चा निकला और उसी दिन रानी ने भी एक कुमार को जन्म दिया। दोनों एक साथ पलने और बढ़ने लगे। फिर अचानक एक दिन एक अनहोनी हो गयी। तब क्या होता है, जानने के लिये इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘घमण्डी कौआ’’
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महाभारत की कथा में तैंतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत आठवीं लोककथा - ‘‘घमण्डी कौआ’’
यह कहानी एक कौआ और हंस की है। वह कौआ दूसरों के जूठन पर पलता हुआ, बहुत घमण्डी हो गया था। जब उसने हंस को देखा, तो उसे बहुत ईर्ष्या हुई और उसने हंस को उड़ान भरने की चुनौती दी। वह चाहता था कि जब वह जीत जायेगा, तो लोग उसके उस रूप के बाद भी उसे ही सर्वश्रेष्ठ मानने लगेंगे। उसे पसंद करने लगेंगे। सारे कौए उसके साथ थे, किन्तु प्रतियोगिता के दिन असल में क्या होता है, इसका विवरण इस कहानी में मिलता है।
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विश्वजीत ‘सपन’
"करम गति टारै नाहीं टरै"
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महाभारत की कथा में इकतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत छठी लोककथा - ‘‘करम गति टारै नाहीं टरै’’
यह कहानी गौतमी नामक एक वृद्धा की है, जिसके इकलौते पुत्र की मृत्यु सर्प के काटने से हो जाती है। एक बहेलिया ने उस सर्प को पकड़ लिया। वह उसे इस कृत्य के लिये दण्डित करना चाहता है। इस पर वाद-विवाद होता है और तब किस प्रकार मृत्यु एवं काल को अपना पक्ष रखना पड़ता है। और अंततः पता चलता है कि किस प्रकार उस बालक के पूर्व कर्म के कारण उसकी मृत्यु हुई है। कर्म का फल हमें इसी संसार में रहते हुए भुगतना पड़ता है। यही इस कथा का मुख्य संदेश है।
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विश्वजीत ‘सपन’
दृढ़ निश्चय ही दिलाती है सफलता
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महाभारत की कथा में इकतीसवीं कड़ी में प्रस्तुत छठी लोककथा - ‘‘दृढ़ निश्चय ही दिलाती है सफलता’’
एक इंसान के इकलौते पुत्र की मृत्यु हो जाती है। वह शव लेकर श्मशान जाता है। सियार और गिद्ध अपने-अपने प्रयोजन से उन्हें कभी रोकने और कभी जाने के लिये कहते रहते हैं, तब उस व्यक्ति में भी आशा का संचार होता है कि हो सकता हो कि किसी प्रकार उसका पुत्र भी जीवित हो जाये। उसने ईश्वर से प्रार्थना की और उसे सफलता मिली। एक सुन्दर संदेश देती इस कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।
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विश्वजीत ‘सपन’
‘‘गुरु की आज्ञा का पालन धर्म समान है’’
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महाभारत की कथा में तीसवीं कड़ी में प्रस्तुत पाँचवीं लोककथा - ‘‘गुरु की आज्ञा का पालन धर्म समान है’’।
तक्षशिला में आयोद धौम्य नामक एक ऋषि थे। उनके गुरुकुल में उनके कई शिष्य गुरुकुल में ही रहकर पढ़ाई करते थे। पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिये जाते थे। उनके तीन प्रधान शिष्य थे - आरुणि, उपमन्यु और वेद। तीनों ही एक से बढ़कर गुरुभक्त थे। यह कथा आरुणि की है कि किस प्रकार उसने अपने प्राण की परवाह किये बिना गुरु की आज्ञा का पालन किया और फसल के लिये जल का संरक्षण किया।
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विश्वजीत ‘सपन’
मनुष्य को दीमक की तरह खा जाता है ‘अहंकार’
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महाभारत की कथा की उनतीसवीं कड़ी में यह कहानी प्रस्तुत है।
यह कहानी देव एवं दानवों के मध्य न केवल युद्ध का है, बल्कि इसमें यह भी बताया गया है कि अहंकारी चाहे कितना भी शक्तिशाली हो, उसने स्वयं को उचित बताने के कितने भी प्रयास कर लिये हों, उसने स्वयं को स्थापित करने के कितने ही प्रयास कर लिये हों, किन्तु एक न एक दिन उसका अहंकार ही उसको ले डूबता है। त्रिपुरों की यह कहानी न केवल रोचक है, बल्कि हमारे जीवन के लिये अति शिक्षाप्रद भी है।
आशा है कि महाभारत की यह प्रतीकात्मक कथा आप सभी को अवश्य पसंद आयेगी।
इसे पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक के प्रयोग किये जा सकते हैं। साथ ही नीचे एक फोटो के रूप में भी कहानी दी जा रही है। इच्छुक मित्र उससे भी पढ़ सकते हैं।
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विश्वजीत ‘सपन’
जननी जन्मभूमिश्च स्वार्गादपि गरीयसी
महाभारत की कथा का अट्ठाइवाँ भाग प्रस्तुत है। इसमें महाभारत की तीसरी लोककथा है - ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वार्गादपि गरीयसी’’।
यह कहानी एक तोते के कृतज्ञता की है। मरे हुए पेड़ से वह इतना प्रेम करता है कि भगवान् को आकर उसे जीवनदान देना पड़ता है। आज हममें इस कृतज्ञता की अत्यधिक कमी है। आइये पढ़ें और सीखें कि जीवन में जो हमारी रक्षा करते हैं, हमें उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
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सादर
विश्वजीत ‘सपन’
‘‘संकट में घबराना नहीं चाहिए’’
महाभारत की दूसरी लोककथा में इस कहानी को पढ़ें। इस कड़ी में यह सत्ताइसवीं कथा का प्रकाशन हुआ है। यह धारावाहिक आपको कैसा लग रहा है, इस बारे में आपके विचार अपेक्षित हैं।
प्रस्तुत कथा एक बुद्धिमान चूहे पलित की है, जिसने संकट में अपनी बुद्धिमानी से न केवल अपनी जान बचाई, बल्कि एक संदेश भी हम सभी को दे गया कि जब आवश्यकता हो, तो किसी से भी मित्रता कर लेनी चाहिए, किन्तु यदि सबल मित्र है, तो उससे दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
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सादर
विश्वजीत ‘सपन’