Wednesday, November 14, 2018
महाभारत की लोककथा (भाग -59)
महाभारत की कथा की 84वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
तपस्विनी वृद्धकन्या
==============
पूर्वकाल की बात है। उस समय तपस्वी कुछ भी करने में सक्षम होते थे। उसी समय कुणिमर्ग नामक एक महान् एवं यशस्वी ऋषि हुए। एक बार की बात है। उन्हें एक कन्या-रत्न की इच्छा हुई। तब उन्होंने बड़ा भारी तप किया एवं अपने इस तप के प्रभाव से एक कन्या को उत्पन्न किया। वह रूप एवं गुण में एक अद्भुत सुन्दरी थी। कुणिमर्ग इससे बड़ा प्रसन्न हुए। उनके ही आश्रम में उस कन्या का पालन-पोषण होने लगा। ऋषि ने उसे प्रत्येक प्रकार की शिक्षा दी और उसका मन भी तप की ओर लगने लगा। समय के साथ ऋषि का जीवन-काल समाप्त हुआ और वे स्वर्गलोक चले गये। तब आश्रम का पूरा भार उस कन्या पर आ पड़ा।
उस कन्या ने ऋषि द्वारा दी गयी शिक्षा के अनुसार अपना जीवन बिताना प्रारंभ किया। वह व्रत, तप आदि करने लगी और देवताओं एवं पितरों की पूजा करने लगी। इस प्रकार एक ब्रह्मचारिणी की भाँति उसका जीवन बीतने लगा। इस प्रकार रहते हुए बहुत समय बीत गया। एक समय आया जब वह बूढ़ी और दुबली हो गयी। तब उसने अपनी स्थिति का ध्यान करते हुए शरीर-त्याग का मन बनाया। उसके इस देह-त्याग की इच्छा को देख नारद जी उसके पास आये और उससे कहा - ‘‘देवि! तुमने कठिन से कठिन तप किया। अपने शरीर का भी ध्यान न रखा और अब देह-त्याग का विचार कर रही हो, किन्तु तुम्हें उत्तम लोक की प्राप्ति संभव नहीं, अतः यह विचार त्याग दो।’’
वृद्धा ने पूछा - ‘‘ऐसा क्यों मुनिवर? मैंने तप किया है। नियमादि से जीवन यापन किया है। इसके बाद भी उत्तम लोक की प्राप्ति क्यों न होगी?’’
नारद जी ने कहा - ‘‘उचित है देवी, तुमने बड़ी तपस्या की, किन्तु तुम्हारा अभी संस्कार (विवाह) नहीं हुआ है। मैंने देवलोक में सुना है कि संस्कार न होने से कोई उत्तम लोक का अधिकारी नहीं बन सकता।’’
वृद्धा बोली - ‘‘किन्तु मुनिवर, अब इस आयु में मुझसे कौन विवाह करेगा? इस समस्या का कोई समाधान हो तो बताइये।’’
नारद जी ने कहा - ‘‘देवि! मैंने तो वही बताया, जो सत्य है। आगे तुम्हें ही निर्णय लेना है।’’
ऐसा कहकर नारद जी चले गये। उस वृद्धा ने कुछ समय विचार किया और ऋषियों की एक सभा में जाकर कहा - ‘‘आप सभी जानते ही हैं कि मैंने अपना जीवन तप में लगा दिया, किन्तु मुझे उत्तम लोक का अधिकार नहीं मिल पा रहा। मेरा संस्कार होना आवश्यक है, अतः जो कोई भी मेरा पाणिग्रहण करेगा, उसे मैं अपनी तपस्या का आधा भाग दे दूँगी।’’
ऋषियों ने ये बात सुनी तो सभी विचारमग्न हो गये। कुछ समय के बाद ऋषि गालव के पुत्र शृंगवान् ने कहा - ‘‘हे देवि! मैं इस विवाह प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिये तैयार हूँ, किन्तु मेरी एक शर्त है।’’
वृद्धा बोली - ‘‘बताइये मुनिवर, आपकी क्या शर्त है?’’
शृंगवान् ने कहा - ‘‘आपके विवाह का प्रयोजन मात्र उत्तम लोक की प्राप्ति है, अतः उसके तुरन्त उपरान्त आप देह-त्याग करने की इच्छा रखती हैं। मेरी शर्त यह है कि कम से कम एक रात्रि मेरे साथ अवश्य निवास करें।’’
वृद्धा ने कहा - ‘‘आपकी यह शर्त मुझे स्वीकार है।’’
ऐसा कहकर उस वृद्धा ने अपना हाथ मुनि शृंगवान् के हाथों में रख दिया। तब मुनि ने शास्त्रीय पद्धति से हवन आदि करके उसका पाणिग्रहण स्वीकार किया। वह वृद्धा तपोबल से युक्त थी। रात्रि में वह अपने पूर्व रूप में एक रूपवती तरुणी बनकर मुनि के पास गयी। तब वह अपूर्व सुन्दरी लग रही थी। उसके शरीर पर दिव्य-वस्त्र एवं आभूषण शोभा पा रहे थे। दिव्य हार एवं अंगराग से मोहक सुगन्ध फैल रही थी। उसके शरीर की चमक से चारों ओर प्रकाश फैल रहा था। ऋषि शृंगवान् उसे देखकर मोहित हो गये। ऋषि को अपने निर्णय पर गर्व हुआ। उस तरुणी ने ऋषि के साथ एक रात्रि निवास किया।
प्रातःकाल उसने मुनि से कहा - ‘‘विप्रवर! आपने जो शर्त रखी थी, उसके अनुसार मैंने आपके साथ एक रात्रि निवास कर लिया। अब मुझे जाने की आज्ञा प्रदान कीजिये।’’
शृंगवान् को उस वृद्धा से लगाव उत्पन्न हो गया था। उन्होंने कहा - ‘‘किन्तु प्रिये, क्या आपका जाना टल नहीं सकता?’’
वृद्धा ने कहा - ‘‘मुनिवर! विधि का विधान कभी टल नहीं सकता। मैं अब जाती हूँ। हाँ इतना अवश्य कहना चाहती हूँ कि यह स्थल पवित्र बन चुका है। अपने चित्त को एकाग्र करके, देवताओं को तृप्त करके जो कोई भी इस तीर्थ में एक रात्रि निवास करेगा, उसे अट्ठावन वर्षों के ब्रह्मचर्य पालन का फल मिलेगा।’’
इतना कहकर उस साध्वी ने देह-त्याग कर दिया और स्वर्गलोक को चली गयी। मुनि उसके दिव्य रूप का स्मरण कर बड़े दुःखी हुए। उन्हें वृद्धकन्या के तप का आधा भाग मिल चुका था। उन्होंने वृद्धकन्या की भाँति ही तप में अपना मन लगा लिया और अपना देह-त्याग कर स्वर्गलोक के भागी बने।
पूर्वकाल से ही भारतवर्ष में वैवाहिक संस्कार को पवित्र माना गया है। यह गृहस्थ आश्रम हेतु आवश्यक है एवं इसे ही संसार के सृजन का हेतु माना गया है।
विश्वजीत ‘सपन’
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment