शास्त्रोपस्कृतशब्दसुन्दरगिरः
शिष्यप्रदेयाऽगमा
विख्याताः कवयो वसन्ति विषये यस्य प्रभोनिर्धनाः।
तज्जाड्यं वसुधाधिपस्य कवयस्त्वर्थं विनापीश्वराः
कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका हि मणयोयैरर्घतः पातिताः।।
अर्थात् शास्त्रोपरिष्कृत शब्दों से सुन्दर वाणी से युक्त, शिष्यों को देने योग्य विद्या से युक्त, प्रसिद्ध कवि जिस राजा के राज्य में निर्धन होकर रहते हैं। वह राजा की मूर्खता है। कवि तो धन के बिना भी ऐष्वर्यसम्पन्न हैं। यदि मणियाँ परीक्षकों द्वारा गिरा दी जाए तो दोष मणियों का नहीं होता।
कहने का तात्पर्य यह है कि राजा का कर्तव्य होता है कि वह अपने राज्य में स्थित विद्वानों का यथोचित सम्मान करे और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वस्तुतः यह उसकी मूर्खता ही कही जाएगी क्योंकि विद्वानों के पास जो यशरूपी धन होता है उसे कोई क्षीण नहीं कर सकता और वह बिना धन के ही धनवान् बना रहता है। यदि कोई अज्ञानी हीरे को पत्थर समझकर उसको उपेक्षापूर्वक कूड़े में फेंक दे तो दोष हीरे का नहीं होता।
विख्याताः कवयो वसन्ति विषये यस्य प्रभोनिर्धनाः।
तज्जाड्यं वसुधाधिपस्य कवयस्त्वर्थं विनापीश्वराः
कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका हि मणयोयैरर्घतः पातिताः।।
अर्थात् शास्त्रोपरिष्कृत शब्दों से सुन्दर वाणी से युक्त, शिष्यों को देने योग्य विद्या से युक्त, प्रसिद्ध कवि जिस राजा के राज्य में निर्धन होकर रहते हैं। वह राजा की मूर्खता है। कवि तो धन के बिना भी ऐष्वर्यसम्पन्न हैं। यदि मणियाँ परीक्षकों द्वारा गिरा दी जाए तो दोष मणियों का नहीं होता।
कहने का तात्पर्य यह है कि राजा का कर्तव्य होता है कि वह अपने राज्य में स्थित विद्वानों का यथोचित सम्मान करे और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वस्तुतः यह उसकी मूर्खता ही कही जाएगी क्योंकि विद्वानों के पास जो यशरूपी धन होता है उसे कोई क्षीण नहीं कर सकता और वह बिना धन के ही धनवान् बना रहता है। यदि कोई अज्ञानी हीरे को पत्थर समझकर उसको उपेक्षापूर्वक कूड़े में फेंक दे तो दोष हीरे का नहीं होता।
यही
जगत का एक सत्य है। जिसने भी इसके महत्त्व को समझा वह जीवन में व्यवहार समझ लेता
है।
सपन
सपन
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