Friday, August 25, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 22

‘‘अन्न-दान की महत्ता’’ 
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महाभारत की कथा की 47वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


हमारे शास्त्रों में न केवल दान की महत्ता है, बल्कि अन्न-दान की भी अत्यधिक महत्ता है। अपना जीवन सभी जीते हैं, किन्तु जो मनुष्य अपने से अधिक दूसरे के लिये जीता है, असल में वही मनुष्य कहलाने की योग्यता रखता है। इस कथा में एक ब्राह्मण और उसके परिवार की इस बड़े त्याग के बारे में बड़े ही रोचक ढंग से कथाकार ने बताया है। अतिथि के लिये अपने भोजन की वस्तुओं का पूर्णतः दान कर देना मात्र भारतीय संस्कृति में ही संभव है। 


इस मनभावन कथा को पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


http://pawanprawah.com/admin/photo/up2405.pdf

http://pawanprawah.com/paper.php?news=2405&page=10&date=21-08-2017


विश्वजीत ‘सपन’

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