Friday, January 4, 2019

महाभारत की लोककथा (भाग - 65)




महाभारत की कथा की 90 वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 
 

राजा की आवश्यकता
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किसी भी प्रकार के समाज में एक राजा की आवश्यकता होती है। जिस देश में राजा नहीं होता, उसमें धर्म की स्थिति नहीं होती। तब राज्य में अराजकता फैल जाती है। पापियों द्वारा समस्त प्रजा को कष्ट पहुँचाया जाता है। इसी कारण देवताओं ने प्रजापालन के लिये राजाओं की सृष्टि की है। पूर्वकाल में एक बार ऐसा ही हुआ कि धरती पर धर्म का लोप होने लगा। राजा से हीन धरती नष्ट होने वाली थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि धरती पर प्रजा नहीं होगी। अधर्म का बोलबाला होने लगा था। देवताओं ने जब देखा, तो वे बड़े दुःखी हुए। वे सभी मिलकर ब्रह्मा जी के पास गये एवं उनसे कहा - ‘‘भगवन्! धरती पर विनाश के बादल छा गये हैं। धर्म एवं वेद का लोप हो रहा है। प्रजा मोह में पड़कर अनुचित कार्यों में संलग्न हो रही है। वहाँ कोई राजा नहीं है। आप ही कुछ उपाय करें, अन्यथा समस्त पृथ्वी का विनाश हो जायेगा।’’


    तब ब्रह्मा जी कहा - ‘‘देवतागण, आप लोग चिंता न करें। पृथ्वी की स्थिति मुझे भी ज्ञात है। आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें। मैं कुछ उपाय करता हूँ।’’


उसके उपरान्त उन्होंने थोड़ी देर तक आपनी आँखें मूँदकर विचार किया। फिर उन्होंने मनु को बुला भेजा।


मनु ने आकर उन्हें प्रणाम किया और बोले - ‘‘भगवन्! आपने मुझे किस प्रयोजन से बुलाया है? आपकी क्या आज्ञा है?’’


ब्रह्मा जी ने कहा - ‘‘जाओ तुम पृथ्वी पर जाकर राजा का कर्म करो तथा नष्ट होती पृथ्वी की रक्षा करो। यह कार्य तुम्हीं कर सकते हो।’’


    मनु के मन में अनेक आशंकायें थीं। वे राजा बनना नहीं चाहते थे। उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा - ‘‘भगवन्! मुझे राजा नहीं बनना है। राजा का कार्य बड़ा कठिन होता है। फिर मैं पाप से अत्यधिक डरता हूँ। विशेषतः मनुष्य जाति में असत्यपूर्ण आचरण अत्यधिक होता है। उनका राजा बनना एक कठिन कार्य है तथा पाप में पड़ने जैसा है, अतः मुझे क्षमा करें।’’


    तब ब्रह्मा जी ने राजा की महत्ता बताते हुए तथा स्वयं ब्रह्मा की भक्ति हेतु प्रेरित करते हुए कहा - ‘‘तुम पापकर्म से मत डरो। जो पाप करेगा, उसे ही पाप लगेगा। इसमें तुम्हें कोई दोष न होगा। राजा तो निष्पक्ष होता है। वह धर्म का पालन करता है। मेरा विश्वास है कि तुम बड़े सुयोग्य राजा होगे। तुम्हारे प्रताप से प्रजा सुखी रहेगी। कोई भी तुम्हें दबा नहीं पायेगा। तुम सर्वदा विजयी होगे। तुम्हारे कारण जो प्रजा सुखी होगी तथा धर्म का कार्य करेगी, तब उसका चतुर्थांश तुम्हें भी मिलेगा। उस धर्म के प्रभाव से तुम्हें ब्रह्मा की भक्ति का प्रसाद मिलेगा। मेरी आज्ञा है कि तुम पृथ्वी पर जाओ एवं शत्रुओं का मानमर्दन करो। प्रजा की रक्षा करो। उनको धर्म में लगाओ। तुम्हें सदा विजय की प्राप्ति हो।’’


    इस प्रकार जब ब्रह्मा जी ने मनु को प्रेरित किया, तो मनु पृथ्वी का राजा बनने के लिये तैयार हो गये। उसके उपरान्त उन्होंने ब्रह्मा जी से आज्ञा ली, उन्हें प्रणाम किया तथा बड़ी भारी सेना लेकर विजय अभियान के लिये निकल पड़े। 


    मनु महाराज ने पृथ्वी पर सर्वत्र घूम-घूमकर पापियों का दमन किया। सभी शत्रु राजाओं को हराकर एक राज्य की स्थापना की। उनके पराक्रम को देखकर सभी दंग रह गये। कुछ ही समय में प्रजा में भय की समाप्ति हुई। वे सुखपूर्वक रहने लगे। मनु ने धर्म का कार्य प्रारंभ किया। धीरे-धीरे प्रजा भी धर्म के कार्यों को करने लगी। समस्त पृथ्वी में शान्ति-व्यवस्था की स्थापना हुई। बुरे एवं अनुचित कर्म करने वालों को उचित दण्ड देकर उन्होंने समाज को उचित मार्ग दिखाया। उन्होंने अपने राजा होने के सभी कर्तव्यों का पालन किया।


    उन्होंने ब्राह्मणों का सत्कार किया। उन्हें दान देकर पुण्य का कार्य किया। ब्राह्मण उन्हें आशीर्वाद देते थे, फलतः उन पर बुरी शक्ति की छाया न पड़ने पाती थी। ऋषि-मुनि निष्कंटक वन में रहने लगे। उनका भय समाप्त हो गया। वे राजा के लिये लिये यज्ञ करने लगे। उनकी प्रजा बड़ी सुखी थी। वे राजा का सम्मान करने लगे। उन्हें प्रतिदिन राजकोष के लिये अनेक प्रकार के उपहार देने लगे। इस प्रकार राजकोष समृद्ध होने लगा। मनु महाराज ने भी उस राजकोष का उचित उपयोग किया। सारा धन वे प्रजा की सेवा, उनकी दरिद्रता आदि को मिटाने में खर्च करने लगे। इससे समस्त प्रजा की दीनता समाप्त हो गयी। प्रजा उनके गुणगान गाने लगी। उनके लिये अपने-अपने घरों में पूजा-अर्चना करने लगे। उनकी लम्बी आयु की प्रार्थना करने लगे। उसके बाद मनु महाराज ने पृथ्वी पर अनेक वर्षों तक राज्य किया। अंततः उनके समस्त कार्यों के कारण उन्हें ब्रह्मा जी का प्रसाद मिला। उनकी भक्ति का फल मिला।


प्रस्तुति - विश्वजीत 'सपन'

1 comment:

  1. बहुत-बहुत आभार आदरणीय।

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