Sunday, October 7, 2018

महाभारत की लोककथा - भाग - 53





महाभारत की कथा की 78वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 

तपोबल का प्रभाव

प्राचीन काल की बात है। तब पृथ्वी पर हैहयवंशी क्षत्रियों का राज्य था। परपुरञ्जय नामक उनका एक राजकुमार था। वह बड़ा ही सुन्दर एवं वंश की मर्यादाओं में वृद्धि करने वाला एक पराक्रमी योद्धा था। एक दिन की बात है। राजकुमार वन में शिकार खेलने के लिये गया। बड़ा भटकने के बाद भी उसे कोई पशु दिखाई न दिया। वह चलते-चलते घने वन में जा पहुँचा। वन इतना घना था कि कुछ भी अच्छी तरह से दिखाई न देता था। सहसा उसे थोड़ी दूर पर एक काला मृग बैठा दिखाई दिया। उसने बाण से निशाना लेकर उस पर बाण छोड़ दिया। वह बाण सीधे उस मृग को लगा और वह मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। राजकुमार बड़ा प्रसन्न हुआ। जब वह मृग के पास पहुँचा, तो चौंक गया। असल में वह कोई मृग न था, बल्कि कोई मुनि थे, जो काला मृगचर्म ओढ़े वहाँ बैठे हुए थे। राजकुमार को यह देखकर बड़ा संताप हुआ कि चाहे भूल से ही सही उसने एक ब्राह्मण की हत्या कर दी थी। वह दुःखी मन से अपने राज्य लौट आया और उसने हैहयवंशी क्षत्रियों से जाकर कहा - ‘‘आज मुझसे एक बड़ा भारी पाप हो गया। भूल से एक मुनि की हत्या हो गयी। एक जघन्य अपराध हो गया। मुझे अत्यधिक ग्लानि हो रही है, किन्तु प्रायश्चित्त का कोई उपाय तो करना ही होगा।’’


इस प्रकार उसने सारी घटना उन लोगों को सुना दी। यह सुनकर सभी क्षत्रिय शोक में डूब गये। उस समय ब्रह्महत्या सबसे बड़ा पाप माना जाता था। इस पाप कर्म का प्रायश्चित्त तो करना ही होगा। ऐसा सोचकर वे सभी कश्यपनन्दन अरिष्टनेमि के आश्रम पर पहुँचे। 


मुनि ने पूछा - ‘‘आप सभी यहाँ किस प्रयोजन से आये हैं? बतायें मैं आप लोगों की क्या सेवा कर सकता हूँ? प्रतीत होता है कि आप सभी किसी संकट में हैं।’’


क्षत्रिय बोले - ‘‘सत्य कहा आपने मुनिवर, हमसे एक बड़ा पाप हो गया है। किसी प्रकार आप ही इसका निदान ढूँढ सकते हैं। कृपया हमारी सहायता करें।’’


मुनि बोले - ‘‘अवश्य, किन्तु कौन-से पापकर्म की बात आप कर रहे हैं। कृपाकर स्पष्ट बतायें।’’


क्षत्रिय बोले - ‘‘मुनिवर हमसे एक ब्राह्मण की हत्या हो गयी है। ब्रह्महत्या का पाप है। इससे बचने के लिये क्या प्रायश्चित्त होगा, उस हेतु आपकी शरण में आये हैं।’’


मुनि बोले - ‘‘यह तो सच में चिंता का विषय है। ब्रह्महत्या तो भारी पाप है, किन्तु यह ब्रह्महत्या कैसे हुई? वह मरा हुआ ब्राह्मण कहाँ है?’’


तब राजकुमार ने पूरी घटना उन्हें विस्तार से बता दी एवं मुनि को लेकर उस स्थान पर गया, जहाँ उस मुनि का मृत शरीर पड़ा हुआ था, किन्तु वहाँ कोई मृत शरीर न था। तब सभी आश्चर्य में पड़ गये कि वह मृत शरीर गया कहाँ? क्या कोई पशु उठाकर ले गया? उन्हें इस प्रकार अचम्भे में पड़े देखकर मुनि अरिष्टनेमि ने कहा - ‘‘
परपुरञ्जय, यह देखो, यह वही ब्राह्मण है, जिसे तुमने मार डाला था। यह जीवित है।’’

मुनि ने उस ब्राह्मण की ओर संकेत करते हुए पूछा। यह वही ब्राह्मण था, जिसे
परपुरञ्जय का बाण लगा था।


परपुरञ्जय आश्चर्य से उस ब्राह्मण देखते हुए बोला - ‘‘यह तो बड़े आश्चर्य की बात है मुनिवर। मैंने बाण से इन्हें मार दिया था। ये धरती पर गिरकर मृत हो चुके थे। मैंने स्वयं देखा था, किन्तु ये जीवित कैसे हो गये?’’

मुनि ने कहा - ‘‘यह मेरा पुत्र है। यह तपोबल से युक्त है।’’


क्षत्रियों ने कहा - ‘‘क्या यह तपस्या का बल है, मुनिवर? हम सभी इस रहस्य को जानने को इच्छुक हैं। मृत व्यक्ति क्या तप के बल से जीवित हो सकता है?’’


मुनि ने कहा - ‘‘आप सभी सुनें। मृत्यु हम पर प्रभाव नहीं डालती। हम सदा सत्य बोलते हैं एवं सदा धर्म का पालन करते हैं, अतः मृत्यु का भय हमें नहीं होता। हम शुभकर्मों की चर्चा करते हैं तथा दोषों का बखान नहीं करते। हम शम, दम, क्षमा, तीर्थसेवन तथा दान में तत्पर रहते हैं। पवित्र स्थल पर पवित्रता से रहते हैं। इस कारण हमें मृत्यु का भय नहीं होता। संक्षेप में इसे ही हमारे तप का बल कह सकते हैं। आप लोग अब अपने घर जायें। आपको ब्रह्महत्या का पाप नहीं लगेगा।’’


यह सब सुनकर सभी क्षत्रिय बड़े प्रसन्न हो गये। उन्हें एक बड़े पाप से छुटकारा मिल गया था। उन्होंने मुनिवर अरिष्टनेमि का बड़ा सम्मान किया एवं उनकी पूजा की। मुनि ने उन्हें आशीर्वाद दिया और वे सभी प्रसन्न होकर अपने-अपने घर चले गये।


तप में अत्यधिक बल होता है। एक तपस्वी ही इसे जान सकता है। तप करने वाले को जीवन में किसी भी प्रकार का भय नहीं होता।


विश्वजीत 'सपन'

4 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 07/10/2018 की बुलेटिन, कुंदन शाह जी की प्रथम पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. सादर आभार आपका। सादर नमन

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  2. looking for publisher to publish your book publish with online book publishers India and become published author, get 100% profit on book selling, wordwide distribution,

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