Thursday, October 25, 2018
महाभारत की लोककथा भाग- 56
महाभारत की कथा की 81वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
जीने की चाह
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बहुत पुरानी बात है। किसी गाँव में एक व्यक्ति रहता था। वह बड़ा ही निडर और साहसी था। सभी उसके साहस की प्रशंसा करते थे। इस बात का उसे अभिमान भी था। उसमें उत्साह की भी कोई कमी न थी। काम और नयी वस्तुओं की खोज में वह भटकता रहता था। इस कारण वह अनेक स्थलों का भ्रमण किया करता था।
एक दिन की बात है। वह किसी बड़े वन में जा रहा था। चलते-चलते वह बड़े ही वीरान और दुर्गम क्षेत्र में पहुँच गया। वहाँ वन बड़ा ही घना था। हर तरफ जंगली जानवरों का संकट मँडरा रहा था। जब उस सुनसान जंगल में भाँति-भाँति की आवाज़ें आने लगीं, तो वह व्यक्ति अत्यधिक भयभीत हो गया। भय के कारण इधर-उधर भागने लगा। उसका साहस जवाब दे रहा था, किन्तु वह मरना नहीं चाहता था। जीने की उसकी चाह उसे भागने और जान बचाने को विवश कर रही थी। वह अपनी पूरी शक्ति लगाकर भाग रहा था तथा किसी सुरक्षित स्थान की खोज में था, किन्तु उसे ऐसा कोई स्थान नहीं मिल पा रहा था और न ही वह जंगल से बाहर ही निकल पा रहा था। भय का साया जब गहरा जाता है, तो भय उस व्यक्ति के पीछे लग जाता है। भागते-भागते उसने ऊपर की ओर देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। वह पूरा का पूरा वन जालों से घिरा हुआ था। निकलने का कोई मार्ग न था। फिर उसने देखा कि एक बड़ी ही भयानक स्त्री उसे अपनी भुजाओं में घेरने के लिये उसकी ओर आगे बढ़ रही थी। वह समझ गया कि यदि वह उस स्त्री की पकड़ में आ गया, तो उसके प्राण नहीं बच सकते थे। उधर वह भयानक स्त्री अट्टहास करती उसकी ओर ही चली आ रही थी। उसने अपनी दृष्टि चारों ओर दौड़ाई तो देखा कि एक बड़ा ही विशाल पाँच सिरवाला नाग भी उसकी ओर अपना जीभ लपलपाते हुए बढ़ा चला आ रहा था। अब उसे अपने बचने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा था। वह और वेग से भागने लगा। अब उसे यह पता न था कि वह कहाँ और किस दिशा में भाग रहा था। उस जंगल में झाड़-झंखाड़ों के बीच एक गहरा कुआँ था। उस पर झाड़-झंखाड़ और खर-पतवार उगने से वह दिखाई नहीं दे रहा था। भागता हुआ वह व्यक्ति उसी कुएँ में गिर गया। वह तेजी से गिरने लगा। तब उसे लगा कि वह नहीं बच पायेगा, किन्तु सौभाग्य से लताओं में उसका पैर फँस गया। उसका पैर ऊपर को और सिर नीचे की ओर हो गया और वह बीच में ही लटक गया।
जान बची लाखों पाये वाली कहावत उसे याद आई। किन्तु समस्या यह थी कि उन लताओं से छूटने का कोई उपाय न सूझ रहा था। तभी उसने नीचे की ओर देखा। वहाँ एक बड़ा भारी साँप लपलपाते हुए उसे ही देख रहा था। उसने सोचा कि भला हुआ वह नीचे नहीं गिरा, अन्यथा उस साँप से बचना तो मुश्किल ही था। अब उसने सोचा कि किसी तरह ऊपर की ओर जाना ही उचित होगा। उसने बड़ी मुश्किल से ऊपर की ओर देखा। उसे वहाँ एक बहुत ही विशालकाय हाथी दिखाई पड़ा। उसका शरीर कहीं सफेद और कहीं काला था। उसके छः मुँह और बारह पैर थे। वह बड़ा ही अजीब दिख रहा था। वह धीरे-धीरे कुएँ की ओर ही बढ़ा चला जा रहा था। उस व्यक्ति के ऊपर की ओर जाने की आशा भी कम हो गयी। यदि वह ऊपर गया तो उस हाथी से बच पाना मुश्किल ही था। अब वह क्या करे और क्या न करे की उलझन में था। किन्तु उसके जीने की आशा अब भी बनी हुई थी। अतः उसने चारों ओर देखना प्रारंभ किया कि कुछ तो ऐसा होगा, जिससे उसे जीने में सहायता होगी। तब उसने देखा कि उस कुएँ के किनारे एक वृक्ष था। उसकी शाखाओं पर मधुमक्खियों ने कई छत्ते बना रखे थे। समय-समय पर उससे मधु की धाराएँ नीचे टपक रही थीं। उसने प्रयत्न कर शहद से अपनी भूख और प्यास मिटाने की व्यवस्था कर ली। अब वह शहद पीकर उसी प्रकार जीवन जीने लगा। उस वृक्ष को रात-दिन चूहे काट रहे थे, जिसे देख वह व्यक्ति निराश होता रहता था, किन्तु उसके जीवन की आशा ने उसे बचाये रखा।
इसी कारण से कहा जाता है कि कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ हों, अनेक प्रकार के भय हों, अनेक प्रकार के कष्ट झेलने पड़ रहे हों, यदि मनुष्य जीने की इच्छा रखता है, तो वह अवश्य जी लेता है। वह कैसी भी स्थिति में जीने का मार्ग अवश्य ढूँढ ही लेता है।
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